Monday, September 13, 2010

कल आज और फिर एक कल


फ्रेम-दर-फ्रेम ये जिंदगी कि टेप,
बीते, बासे एहसासों पर एक और पर्त जमाती जाती है
वही एहसास, जिन्हें मन किसी पोटली में ठूंसता रहता है
अक्सर उसी पोटली में मुंह डालकर आज के सवालों के जवाब तलाशता है

बीते कल को धोया, याद्दाश्त कि रेज्माल से घिसा भी
पर परेशां हूँ,
वो बीता कल कभी आज के जैसा साफ़, ताज़ा नज़र नहीं आया
तत्क्षण की कोर से गुजर चुके एक भी किरदार को में वापस खींच न पाया

और वो, जो अब तक लिपटा पड़ा है फर्दा के बेनाप थान में
वो और परेशान किये जाता है, कि जाने किस रंग का होगा
दिन रात को उधेड़ता बुनता उसकी तैयारी करता हूँ
हाथ की बेमानी लकीरों में उसे भांपने कि कोशिशें करता हूँ

मैं पुरसुकून सोता, मगर फर्दा के नाक-नख्श जाने किसपे जाएँगे
ये खयाल मुझे जगाए रखता है
परदे के पीछे से उसका चेहरा देख लूं
इस फिराक में कभी परदे के आगे का नज़ारा भूल जाता हूँ

सबसे ज्यादा दर्द देता है लम्हा-ए-हाज़िर
फ्रेम दर फ्रेम बेरहमी से फिसलती जिंदगी की टेप
कभी एक पल के ठहराव में रोके रखती है
कभी झपकी पलकों की आड़ से महीने-साल सरका जाती है

जिंदगी कि ये टेप मेरे लम्स के परे है
पुरजोर कोशिश की कई-बारगी
अज़ल से देखे जा रहा हूँ तमाशाई बनकर
मगर एक लम्हा भी मेरे रोके से कहाँ रुका है....

                                copyright © 2010 Yogesh Baher

Monday, June 14, 2010

नींद री गोली


हूक ने छुपाऊं 


पर कठै....

हूक रो भार घणो , दर्द रो बोझ बडो 

जी करै कोई बेली ने सुणाऊँ
बस! कै दूँ  और हलको हो जाऊं 

पर सगळा आप-आपरी घाणी घुमावण में लागोड़ा है 
आपरी पीड़ कोई और ने सुनावण में लागोड़ा है
बड़ो तेज़ ओ ज़मानो और बड़ी तेज़ घाण्यां री इस्पीड
सब आपरै ही अरमानां रो तेल निकालण में लागोड़ा है

फेर सोचूं ...

दुनिया रे आगे पग ना उघाड़ 
फाला ना दिखा, दुखती रग ना उघाड़
बात निकलेली तो कइं ठा कित्ती दूर जावेली 
कठे सूळ बण ऊगेली,  कद पग में लाग जावेली 

ओ ही सोचूं और चुप-चाप नींद री एक गोली निगल जाऊ हूँ 

नीद बड़ी मीठी होवे है
दर्द सूँ ज्यादा ढीठी होवे है

नींद री बायाँ में जग्यां बहुत है 
म्हें और म्हारी हूक , दोनूं ही समा जावां 
अलग अलग पसवाड़ा ले लां
अंधारो कर लां , सो जावां 

पर जद थोड़ी देर में
घुप्प घणे अंधेर में 
कोई म्हने झंझोड़े है
म्हारी नींद रा तागा तोड़े है 

फोरुं पसवाड़ो तो देखूं 
कै हूक जागती बैठी है 

"म्हें सोचूं हूँ ....एकली बैठी ही , थने भी जगा दूँ "

ई हूक ने छुपाऊं 
तो कठै ...


माने :
हूक : पीड़ा 
बेली : साथी 
सगळा : सभी 
घाणी : कोल्हू 
फाला : फफोले 
कईं ठा : क्या पता 
सूळ : काँटा 
ढीठी : ढीठ 
जग्यां : जगह 
पसवाडा : करवट 
जद : जब
घुप्प : गहरा 
तागा : धागे 
फोरुं : बदलता हूँ 




स-धन्यवाद :
योगिता बहड़ 





copyright © 2010 Yogesh Baher

Sunday, June 13, 2010

कितनी ज़ाहिर, कितनी ओझल...



आफ़ताब के तागे थामे चाँद तलक चढ़ जाता हूँ 
फिर थक कर लेट जाता हूँ तेरी शुआओं की गोद में 
सोता हूँ तो तेरी ज़ुल्फ़ की छुअन 
अक्सर चेहरे को सहलाती है

छूट कर फिर भागा है मन यादों के टीलों पर 
फिर टटोलने लगता है वो बरस-महीने-दिन-पहर 
जब हम तुम साथ थे, हाथों में हाथ थे 
फिर चांदनी में खो जाती हैं 
तसव्वुर के तकिये पर सर रख कर 
मेरी रातें सो जाती हैं ...

कितनी ज़ाहिर, कितनी ओझल 
यादें तेरी...

बे-शर्मी से लिपटी इन पलकों को 
सुबह-सुबह जो खींच कर अलग करता हूँ 
तो सामने तेरी यादों की अनगिन किरचें 
बिखरी मिलती हैं मुझको 
कमरे के बाहर: ओस की बूंदों में फैली 
कमरे के भीतर: बे-तरतीब किताबों सी बिखरी 

सब को बुहार कर भर लेता हूँ साँसों में 
तेरी यादों में नहा कर रोज़ निकलता हूँ मैं घर से 

कितनी ज़ाहिर, कितनी ओझल 
यादें तेरी...

दिन के जलते सूरज की किरनें 
जैसे मेरे ही इंतज़ार में बैठी थीं  
घर के बाहर बस निकला ही था 
के घेर लिया सौ हाथों से 

पर बादल के एक टुकड़े सी यादें तेरी 
मुझको लेकर चलती हैं साए में
तेरी यादों के साये-साये चलता हूँ 
तेरी यादों में भीगा-भीगा चलता हूँ  

कितनी  ज़ाहिर , कितनी  ओझल 
यादें  तेरी ...


copyright © 2010 Yogesh Baher

Saturday, June 12, 2010

देखा ! तुम भूल गए !एक दिन मुझे भी भूल जाओगे



इक बिल्ली थी दीवानी सी 
इक बिल्लू पे वो मरती थी
गुस्सा खा कर , लावा बरसा कर 
बिल्लू से कहा करती थी ....

बिल्ली उवाच :
"बहुत भुलक्कड़ हो तुम साले 
इक दिन मुझे भुलाओगे
मेरी पूंछ को  ब्रश समझकर 
उससे शेव बनाओगे "
दोहा :
बिल्लू झेंपा शर्म से , पानी बनकर फैला 
हाथ जोड़कर, पूँछ दबाकर बोला "मेरी लैला.. "

बिल्लू उवाच :
"भूल हुई मुझसे बिल्ली मैं हूँ कितना शर्मिन्दा 
तुम तो जानो मैं हूँ भोला , और मासूम परिंदा 
लगता है पच्चीस की आयु ,मुझपर पड़ रही भारी
'फेड' हो रही है अक्कल और उड़ रही मेरी दाढी
उड़ रही मेरी दाढ़ी पर दिल सही सलामत  
और दिल में तुम हो बिल्ली , तुम मेरी चाहत 

भूल कभी जाता हूँ तुमको फून लगाना 
और कभी वीकेंड पे तुमको यहाँ बुलाना
कभी भूलता हूँ करना तारीफ़ तुम्हारी
और कभी पिक्चर की टिकटें बुक्क कराना

नया टॉप पहने जब बिल्ली 
सामने मेरे आती है
कलर- ब्लाइंड आंखें मेरी
जाने क्यूं धोखा खाती हैं 

नया-नया सा कुछ लगता है 
पर क्या ? पता नहीं चलता
"लुकिंग औसम के आगे कोई 
शब्द ही मुझे नहीं मिलता

वेलेंटाइन के दिन जो प्रेमी 
"स्टोन मेन मर्डरदिखलाए
मैं  मानूं  की ऐसा  प्रेमी 
किस मुहं से  'कैरिंगकहलाए 

पर मेरी भूलों का तुम  कोई  उल्टा अर्थ लेना
'स्कोर्पियन ' हो, पर इस व्यथित मन से बदला तुम व्यर्थ लेना

(नेपथ्य में मेघ-गर्जन)
बिल्ली उवाच:
दोहा :
"झूठा आलसी बे-परवाह, झूठा तेरा प्यार
यू डोंट लव मी आई एम् श्योर ,
बिल्लू तू मक्कार "
(नेपथ्य में मेघ-गर्जन के साथ गूँज:
"यु डोंट लव मी आई एम् श्योरडोंट टॉक टू मी एनी मोर” X बारह आवृति)

सुन कर बिल्ली के वचन
बिल्लू हुआ उदास 
जीवन पर से उठ गया ,
बिल्लू का विश्वास 
बिल्लू का विश्वास मगर है पक्का इतना 
बिल्ली से है प्रेम, वो रूठे चाहे जितना 


बिल्लू उवाच (पराजित भाव से):
तुम्हे मनाने को मैं सारे जतन करूँगा
सौ चूहों की बली चढ़ाकर हवन करूँगा
बिल्लू-सहस्त्र-नाम पाठ का रटन करूँगा
कार्टून नेटवर्क देखने का भी तर्पण करूँगा

पाकिस्तानी गाने भी गाना छोड़ दूंगा
बच्चों वाले चुटकुले सुनना छोड़ दूंगा

शाहरुख़ की मूर्ति पर कोकोनट फोडूंगा  
धूप जला, साष्टांग-दंडवत हाथ जोडूंगा 

परिक्रमा करूँ ऐश्वर्या को देवी मानूं
'बिजली' और 'मीनू हैं सबसे 'हॉट' ये मानूं 
पिंक-फ्लोयेड  है 'सैड' कहूँ 
ओशो बाबा को 'मैड' कहूँ   

बिल्लू कहे ये हाथ जोड़कर 
किताबें फाड़ , लैपटॉप फोड़ कर 
गिटार पे गीत सुनकर सुन्दर
प्रसन्न होवे बिल्ली सुनकर

मुझे लगा दो सौ-सौ गितलू
कुछ कहूँगा
पर यदि रूठी यूँही रहोगी
सह सकूंगा 
दोहा: 
"मेरे सारे काम करेगा??" शर्त वही फिर रखकर 
पंजा देदे मुझको अपना , आजा पास फुदक कर 
बिल्ली आजा पास फुदक कर 
बिल्ली आजा पास फुदक कर 
||इति||



माने  :
बिल्लू : (पु. ) बिल्ली  (स्रोत - हिमाचली )
व्यथित : दुखी 
नेपथ्य : बिहाइंड कर्टेन
मेघ-गर्जन : थंडरिंग 
उवाच : कहा 
पराजित भाव : गिव-अप मूड 
तर्पण: क्विटिंग फॉर गुड 
साष्टांग  दंडवत : लाइंग फ्लैट ओन फ्लोर 
परिक्रमा: चक्कर काटना 
गितलू : गुदगुदी  (स्रोत - हिमाचली )

स-धन्यवाद:
'बिजली' और 'मीनू’: बिल्ली की 'हॉट' सहेलियां 
'स्कोर्पियन ' राशि: वह राशि जो छोटे से छोटे मतभेद को अत्याचार' मानती है और प्रतिकार लेने की प्रतीक्षा करती है  


copyright © 2010 Yogesh Baher

Tuesday, June 8, 2010

कुछ यूँ मिले ..



कभी तुम मुझे रौशनी से मिले थे 
बुझी ख्वाहिशों में नमी से मिले थे 

मैं ख़ुद को ख़ुदा सा समझने लगा था 
मुझे  तुम ख़ुदा में कमी से मिले थे

कहाँ फुर्सत-ए-बंदगी मुझको मिलती
सभी सिलसिले तो तुम्ही से मिले थे 

जहाँ उलझनों में सिरे खो गए हैं
दिलों के ये धागे वहीँ से मिले थे...

copyright © 2010 Yogesh Baher